Posted by: Sukher Chador

खुशी के कुछ पल !!

खुशी के कुछ पल ,कुमलाई में 2017,अक्टूबर का महिना, सुखेर चादर ‘ तैयार हो रहा था उत्तर बंगाल के कुमलाई के बंद पड़े चाय बगीचे में जाने की,जहाँ हज़ारों श्रमिक, भूख से तड़प रहे थे।वहाँ लगभग 200 परिवारों के घर में चूल्हे नही जल रहे थे,तन को ढकने के लिए कपड़े नही थे।इन्ही लाचार लोगों तक पहुंचने की तैयारी थी हमारी।पर भगवान को शायद कुछ और ही मंजूर था।। उन्ही दिनों मेरी जन्मदात्री माँ, जिसे हर तकलीफ से बचाकर रखना मेरा एकमात्र लक्ष्य था,ने अचानक फैसला ले लिया मुझे छोड़कर मेरे बाबा के पास ऊपर चली जायेगी। पर हम भी ज़िद्दी थे,जाने नही देंगे उन्हें।बीच रात में एम्बुलेंस बुलाकर माँ को लेकर दौड़े अस्पताल।फिर शुरू हुई उनकी लड़ाई मौत के साथ।मैं और मेरे भैया भी रात दिन उनकी लड़ाई में शामिल रहते।मैं सारी रात उनके पास अस्पताल में रहती और सुबह घर आकर ‘ सुखेर चादर’ के काम मे लग जाती। एक तरफ मेरी माँ मृत्यु से लड़ती हुई,दूसरी तरफ हज़ारों भूखे श्रमिक और उनके परिवार।मन बुरी तरह से रो रहा था।भगवान से मन ही मन कही, अगर मेरी किस्मत में उन असहायों तक पहुंचना लिखा है, तो मेरी माँ को कुछ नही होगा।भगवान की इच्छा और माँ की भी इच्छा थी मैं जाऊं।काफी जूझने के बाद धीरे धीरे माँ ठीक होने लगीं, और एक दिन हम उन्हें वापस घर ले आये। उन्हें उस हालत में छोड़कर मैं जाना नही चाहती थी पर उन्होंने मुझे हिम्मत दी।वो चाहती थीं मैं जाऊं और अपने सपने को पूरा करूँ।माँ का आशीर्वाद लेकर जिस दिन उन लाचार परिवारों तके पहुंची दिल रो उठा।उनके शरीर में ढंग के कपड़े नही थे,छोटे छोटे बच्चे नंगे पांव,फ़टे कपड़े,आँखों में भूख की छाया , अपनी ही दुनिया मे खोये हुए।हमे देखकर उनकी आँखे खुशी से चमकने लगीं। उनके लिए राशन,कम्बल, और पुराने गर्म कपड़े लेकर गए थे हम।बहुत ही सामान्य था शायद हमारे लिए,लेकिन उनके लिए जीने की एक आस।हाथों में पुराने कपड़े लेकर ही नन्हे नन्हे बच्चे इतने खुश थे मानो उन्हें बेशकीमती कुछ मिला हो। वलहाँ मैने अपनी माँ के आशीर्वाद को महसूस किया और महसूस किया उन हज़ारों असहायों की आशीर्वाद।जीवन मे पहली बार लगा कि हम खुद को दुखी समझते हैं लेकिन दुनिया में किस हद तक दुख है शायद हम जैसे ऊंचे मंज़िलों में निश्चिंत जीवन बिताने वाले लोगों को अंदाजा भी नही। सुखेर चादर ने अपने सुख का स्पर्श धीरे धीरे उन जैसे असंख्य असहायों को दिया और जितना सुख बिखेरा उससे कई गुना ज़्यादा सुख बटोरा उन असहायों के आँखों में तैरती खुशी को देखकर।

रुपाली मजूमदार, प्रेसिडेंट