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We Seek Love God Above All thing

सुखेर चादर की यात्रा शुरु हुई थी 9 अक्टूबर 2016 को। दुर्गाष्टमी के दिन जब सभी व्यस्त थे मंदिर में रखी मिट्टी से बनी दुर्गा माँ को अंजली देने में, तब हम सबका प्रिय सन्दीप(जाजावर) व्यस्त था दमदम केंटोनमेंट के प्लेटफार्म में, एक रक्त मांस से बनी दुःखी माँ के आँसू पोछने में। उसे लगा , क्या इस माँ में ही दुर्गा का असली रूप नही है! इसी भावना से उस दिन उसने माँ के चरणों में, मिठाई, फल, और कपड़े, अर्पण करके अंजलि दिया। यही नही, उसने उस प्लेटफार्म के कुछ भूखे बच्चों को भी पेट भरकर खिलाया। जो शांति और संतुष्टि उसे उन लाचार गरीबों को खिलाकर मिली, शायद मिट्टी से बनी मूर्ति के सामने अंजलि देकर उसे नही मिलती। सन्दीप के इसी सोच का साथ दिया हम जैसे कुछ साथियों ने जो महज़ फेसबुक से एक दूसरे से जुड़े थे।हम सबको एक मकसद मिला, एक राह मिली, अपने बरसों से मन में बस रहे सपने को पूरा करने का। शुरु हुई हमारी सपनों की यात्रा। आज ‘सुखेर चादर‘ एक नन्हे पौधे से विशाल वृक्ष बन चुका है।इन कुछ सालों में नन्हे नन्हे पावों से चलते हुए ‘सुखेर चादर‘ ने हजारों लोगों का दिल ही नही जीता बल्कि हज़ारों घरों में खुशी की रोशनी भी फैलाई है। ’सुखेर चादर‘ ने बहुत परिश्रम के बाद सरकारी मान्यता (registration), भी प्राप्त कर लिया है। हमारा मुख्य उद्देश्य है समाज के असहाय, गरीब, बेसहारों का सहारा बनना बिना किसी, जाती पाती, धर्म का भेद भाव किये।

पिछले पाँच सालों में ‘सुखेर चादर’ ने पश्चिम बंगाल के लगभग सभी ज़िलों में पहुँचने की कोशिश की है। 5000 से भी ज़्यादा गरीब, ज़रूरतमंद और बेसहारों को किसी न किसी तरह से मदद पहुँचाई है। जब भी कभी कोई बेसहारा रोया हम खुद को रोक न सके, अपनी क्षमता अनुसार जितना हो सके हमने कोशिश किया। ’सुखेर चादर‘ ने अपना प्यार और मदद का हाथ बढ़ाया, अनाथ आश्रम के नन्हे बच्चों, मानसिक रूप से मंद लोगों, वृद्धाश्रम के असहाय माँओं, बंद पड़े चाय बगीचे के हज़ारों श्रमिक और गरीबी से जूझती उनके परिवार और पुरुलिया के अत्यंत ग़रीबी में दिन काट रहे भूखे नंगे शबरों,की ओर।हमारी कोशिश रही है ज़्यादा से ज़्यादा उन छात्रों तक पहुँचने की जो पैसे के अभाव से पड़ नही सकते,उन परिवारों तक पहुँचने की जो पैसे के अभाव से चिकित्सा नही कर सकते। इसी तरह अपने सपनों को पूरा करते हुए ‘सुखेर चादर‘ धीरे धीरे अपनी मंज़िल की ओर बढ़ रही है, सिर्फ और सिर्फ अपने हज़ारों साथियों की मदद से जिनके बिना हम अधूरे हैं। देश के विभिन्न प्रांतों से ही नही बल्कि विदेशों से भी साथियों ने ‘सुखेर चादर‘ को हर कदम पर आर्थिक, मानसिक, और शारीरिक रूप से हमेशा उत्साह दिया है। हम उन सबके आभारी हैं पूरी आशा रखते हैं आगे भी हमे उनका साथ मिलता रहेगा। यही सुखेर चादर की सफलता है कि हजारों दोस्तों को एक सूत्र में बांधने में हम कामयाब हुए हैं, अपने प्यार औऱ भरोसे से।

रुपाली मजूमदार
सुखेर चादर,  प्रेसिडेंट/सभापति

Our Values

We appreciate the honesty in work and try to be as much transparent as desirable to our friends who are there to believe and contribute us to accomplish our soul mission. We are responsible to the communities in which we live and work and to the world community as well. Everyone deserves to be happy.

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In our journey of spreading love and fraternity, journey you will never forget as you see the desperate conditions of people living in extreme poverty. Join with Sukher Chador, to do something for those who can never repay, but who truly needs our love and support.

Our Mission

“Give Today. Rebuild Tomorrow.” as said by Mother Teresa. We may not have much to give in kind, but we can give a lot of love and feeling of wantedness to the unwanted destitute, reaching the extreme poverty-stricken humans. Mother Teresa says and we believe “It’s not how much we give, but how much love we put into giving.”

"সুখের চাদর এর বীজ রোপণের গল্প"

দিনটা ছিল ৯ই অক্টোবর, রবিবার, দূর্গাপূজার অষ্টমী। পাড়ার পূজা প্যান্ডেলে দেখলাম ভীষণ ভীড়। অজস্র মা ও বোনেরা পূজার ডালি, ফল, মিষ্টি নিয়ে লাইন দিয়ে দাড়িয়ে। রাস্তার পাশে দেখলাম বেশ কিছু ক্ষুধার্ত মানুষের মুখ।

আমার মনে হল মাটির প্রতিমা যেন কাঁদছে এই অসহায় মানুষগুলোকে দেখে আর বলছে আমাকে নয় তোরা ওদেরকে আগে পূজা কর। ওদের ক্ষুধা নিবারণ কর।

আমি চলে গেলাম দমদম ক্যান্টনমেন্ট স্টেশনের ১ নম্বর প্ল্যাটফর্মে। সেখানে পরিচয় হয়েছিল ৮০ বছরের এক দুঃখিনী বৃদ্ধা মায়ের সাথে। যে মায়ের তিন পুত্র থাকলেও তারা তার মাকে দেখেনা। সেই মা থাকে তার মেয়ের ঘরের এক কোনে ও রোজ সকাল ১১ টা থেকে দুপুর ৩ টে পর্যন্ত্য পাতি লেবু ও কাগজি লেবু বিক্রি করে নিজের খরচ চালায়। আমি তার কাছে একটি শাড়ি ও পাঁচটি ফল নিয়ে গিয়ে মা এর পাশে বসে মাকে দিলাম অঞ্জলি। মাকে প্রণাম করে মায়ের হাসি মুখ দেখে প্রাণ জুড়ালো। মনে হল এটাই আমার জীবনের শ্রেষ্ঠ অঞ্জলি। এক পথচারি তুলে দিল মায়ের সাথে আমার একটি ছবি।

এরপর গেলাম ৩ নম্বর প্ল্যাটফর্মে। সেখানে পাশের বস্তির ও প্ল্যাটফর্মের কিছু দুঃস্হ ও ক্ষুধার্ত শিশুদেরকে করালাম স্বল্পাহার। ওদের হাসি মুখগুলি দেখে মন খুশী হল আমার। এক হকার ভাই তুলে দিল কিছু ছবি।

সেদিন বিকেলে পোস্ট করলাম “আমার অঞ্জলি” ফেসবুকে। আমার “যাযাবর পাখিরালয়” এর বন্ধুরা সেই পোস্ট দেখে উৎসাহিত হয়ে বললো, “দাদা চলোনা এত সুন্দর মানবসেবার কাজটা আমরা সবাই মিলে করি”। ওদের কথা মনে ধরলো। শুরু হল আমাদের পথচলা। এক থেকে দশ, দশ থেকে একশো, একশো থেকে আজ আমরা আজ সহস্র গত তিনবছরে।

আমি কৃতজ্ঞতা জানাই সুখের চাদরের সকল ভাই, বোন, বন্ধু ও শুভাকাঙ্খীদের প্রতি সমাজের অসহায়, দুঃস্হ, নিরন্ন মানুষদের পাশে দাড়িয়ে তাদের নিঃস্বার্থ ভালবাসা ও অবদান দেবার জন্য। কি অক্লান্ত পরিশ্রম করে সবাই সততা ও নিষ্ঠার সাথে মানবসেবার ব্রত নিয়ে।

আমরা আরও অনেক পথ চলতে চাই, আরও বহু মানুষদেরকে সুখের চাদর পরাতে চাই। তোমরা পাশে থেকো বন্ধু।

সেদিনের সুখের চাদর এর বীজ রোপণের পোস্টটি দিলাম নিচে?

?”আমার অঞ্জলী”?
০৯.১০.২০১৬

“চিন্ময়ী মায়ের শোকে মৃন্ময়ী প্রতিমা কাঁদে””

পূজো মন্ডপে বড্ড ভীড়। আমি তাই আজ অনেকদিন পর মন্ডপের বাইরে দমদম ক্যান্টনমেন্ট রেল স্টেশনে মহাঅষ্টমীর অঞ্জলী দিলাম। মায়ের সাথে গল্প করলাম অনেক। নতুন বসন (সুখের চাদর) ও পঞ্চ ফল পেয়ে মায়ের মুখের মমতাময়ী হাসিটা আমার পরম প্রাপ্তি। সঙ্গে মায়ের ৩০ জন সন্তানকে(পথ শিশু) মায়ের প্রসাদ বিতরন করে ধন্য হলাম।

সবাইকে মহাষ্টমীর শুভেচ্ছা জানাই।

ভাল থেকো, ভাল রেখো.

যাযাবর